उत्तराखंड में 12 साल पहले केदारनाथ में आई आपदा के बाद भी अर्ली वार्निंग सिस्टम का विकास नहीं हो पाया

देहरादून। उत्तरकाशी के धराली जैसा ही मंजर 12 साल पहले केदारनाथ में आए जलप्रलय के समय भी था। तब से उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं, लेकिन अभी तक अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित नहीं हो पाया है।

वह भी तब जबकि जून 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद से ही इस मुद्दे पर निरंतर बात हो रही है, लेकिन अभी तक यह मुहिम धरातल पर नहीं उतर पाई है। वह भी तब जबकि, दक्षिण भारत के राज्यों में उत्तराखंड की टीम इस सिलसिले में अध्ययन कर चुकी है।

यह किसी से छिपा नहीं है कि समूचा उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से संवेदनशील है। हर साल ही राज्य को प्राकृतिक आपदाओं में जान-माल की हानि उठानी पड़ रही है। इस लिहाज, केदारनाथ में आए जलप्रलय को कोई कैसे भूल सकता है।

तब बड़ी संख्या में तीर्थयात्री और स्थानीय लोग आपदा में काल कवलित हो गए थे। साथ ही परिसंपत्तियों को भी भारी क्षति पहुंची थी। इस सबको देखते हुए आपदा न्यूनीकरण के लिए ऐसा तंत्र विकसित करने पर जोर दिया गया, जिससे पर्वतीय क्षेत्रों में नदियों में बाढ़ अथवा बादल फटने से सैलाब आने पर निचले क्षेत्रों को सतर्क किया जा सके।

कुछ समय इस तरह का अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने को लेकर बात होती रही, लेकिन फिर आई-गई हो गई। फरवरी 2021 में चमोली जिले के रैणी में आई आपदा के बाद फिर से अर्ली वार्निंग सिस्टम के मुद्दे ने जोर पकड़ा।

यही नहीं, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने बाढ़ व भूस्खलन के दृष्टिगत अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने के लिए अन्य राज्यों में उठाए गए कदमों का अध्ययन किया। इसी कड़ी में कुछ माह पहले ओडिशा व कर्नाटक में अध्ययन दल भेजा गया था।

बावजूद इसके अभी तक अर्ली वार्निंग सिस्टम को लेकर कोई ठोस पहल धरातल पर नहीं उतर पाई है। अब उत्तरकाशी के धराली में आई आपदा के बाद अर्ली वार्निंग सिस्टम का विषय फिर से चर्चा के केंद्र में है। उम्मीद जताई जा रही है कि अब सरकार इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाएगी।

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