हल्द्वानी। भले ही उत्तराखंड सरकार की ओर से हल्द्वानी नगर निगम को आरक्षित कर दिया गया है और मेयर पद के लिए दावेदारी आने लगी है, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा के लिए इस सीट पर दमदार चेहरा ढूंढना आसान नहीं होगा। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि यह सीट 56 वर्षों तक अनारक्षित रही है। पिछले 10 वर्षों से कुमाऊं के सबसे बड़े नगर निगम की सीट भाजपा के पास ही है। ऐसे में जहां भाजपा के लिए बड़ी चुनौती रहेगी, वहीं कांग्रेस इस तरह के निर्णय को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है।
कुमाऊं में राजनीति का बड़ा केंद्र है हल्द्वानी
कुमाऊं में राजनीति का बड़ा केंद्र हल्द्वानी ही है। इसमें मंडल के सबसे बड़े नगर निगम की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। 10 वर्षों तक डॉ. जोगेंद्र रौतेला ही मेयर रहे हैं। वह शहर का बड़ा चेहरा बन चुके हैं, जिनकी अलग ही छवि है। इसके अतिरिक्त कई ऐसे चेहरे भी हैं, जिनका अपना अलग राजनीतिक प्रभाव है। अचानक सीट को अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित किए जाने से दिग्गज नेता चकित हैं।
भाजपा के लिए डैमेज कंट्रोल करना बड़ी चुनौती
जिस तरह डॉ. रौतेला लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री व विधायक बंशीधर भगत समेत कई अन्य नेताओं के वह करीबी माने जाते हैं। भले ही बड़े नेता खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन सीट अनारक्षित होने पर चुनाव में उनके समर्थकों की नाराजगी भी देखने को मिल सकती है। ऐसे में भाजपा के लिए डैमेज कंट्रोल करना बड़ी चुनौती रहेगी।
पार्टी के लिए पहले तो दमदार व जिताऊ चेहरा खोजना और फिर दिग्गज नेताओं को चुनाव प्रचार में सहजता से झोंकना आसान नहीं होगा। इसके लिए अतिरिक्त प्रयास व कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए खोने के लिए कुछ नहीं है, क्योंकि वह पिछले 10 वर्षों से निगम की सत्ता से दूर है। सीट आरक्षित होने पर कांग्रेस के पास भी भले ही कोई बड़ा चेहरा नहीं है, लेकिन उसके सामने भी बड़ा चेहरा न होना उसके मनोबल को ही बढ़ाएगा।
बनभूलपुरा जैसा बड़ा क्षेत्र जहां कांग्रेस का ही वोट बैंक माना जाता रहा है, यह भी कांग्रेस के लिए बड़ी उम्मीद है। फिलहाल ये अनंतिम सूची है। इस सूची को लेकर राजनीतिक हलकों में कई तरह के कयास भी लग रहे हैं।