श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में स्तन कैंसर जागरूकता पर सेमीनार का आयोजन

श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में स्तन कैंसर जागरूकता पर सेमीनार का आयोजन

देहरादून: श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में स्तन कैंसर जागरूकता माह के अन्तर्गत सेमीनार का आयोजन किया गया। सेमनार में डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ व मेडिकल छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया। कैंसर की आधुनिक जानकारियों पर आधारित पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। कैंसर विशेषज्ञों ने स्तन कैंसर के बढ़ते मामलों पर चिंता जाहिर करते हुए स्तन कैंसर की रोकथाम व समय से उपचार व चिकित्सकीय परामर्श लिए जाने के लिए महत्वपूर्णं जानकारियां दीं।
शनिवार को श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के सभाकार में कार्यक्रम का शुभारंभ श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ अजय पंडिता व ब्रेस्ट एण्ड एंड्रोक्राइन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ नीलकमल कुमार ने संयुक्त रूप से किया।

डॉ नीलकमल कुमार, विभागाध्यक्ष, ब्रेस्ट एण्ड एंड्रोक्राइन विभाग ने जानकारी दी कि ब्रेस्ट कैंसर बहुत तेजी के साथ फैल रहा है। डॉ नीलकमल कुमार ने स्तन कैंसर होने के रिस्क फैक्टर होने के बारे में विस्तृत जानकारी दी। 12 साल से पहले महावारी होना, रजोवृति 55 साल के बाद होना, 30 साल के बाद बच्चों को जन्म देना, बढ़ी उम्र तक अविवाहित रहना एवम् बच्चों को एक साल से कम स्तन पान कराना – यह सभी स्तन कैंसर होनेे की सम्भावना को 2 से 3 गुना बढ़ा देते हैं। स्तन का सख्त होना मुलायन स्तन की तुलना में 4 गुना कैंसर की सम्भावना बढ़ा देता है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि अगर मां को कैंसर है तो बेटी में कैंसर होने की सम्भावना दो गुना बढ़ जाती है यदि मां और मौसी में दोनों को कैंसर है तो बेटी में कैंसर की सम्भावना 3 गुना बढ़ जाती है। डॉ नीलकमल ने यह भी जानकारी दी कि समय पर ब्रेस्ट गांठ का परीक्षण किया जाए तो 95 प्रतिशत महिलाओं का पूर्णं रूप से उपचार हो सकता है।

डॉ नीलकमल ने स्तन कैंसर के लक्ष्णों के बारे में भी जानकारी दी और बताया कि स्तन के अंदर दर्द रहित गांठ एवम् निप्पल से पानी जैसे पदार्थ एवम् खून का स्त्राव होना एवम् निप्पल का अंदर की तरफ धंस जाना इन सभी स्थितियों में ब्रेस्ट विशेषज्ञ की सलाह आवश्यक है। साथ ही यह बताया कि स्तन में गांठ होने पर घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि 10 में से 9 गांठ कैंसर की नहीं होती है परन्तु उनका परीक्षण ब्रेस्ट क्लीनिक में करवाना अति आवश्यक है।

डॉ नीलकमल कुमार ने सुझाव दिया कि संतुलित जीवन शैली को अपनाकर, वेस्टन डाइड को छोड़कर, शारीरिक व्यायाम को बढ़ावा देकर व वजन नियंत्रित रखकर कैंसर के प्रभावों को 30 प्रतिशत तक कम किया जा सकता हैं।

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