उत्तराखंड सरकार ने उच्चतम न्यायालय में तैनात एडवोकेट ऑन रिकार्ड-सह स्थायी अधिवक्ता अभिषेक अत्रैय को हटा दिया है। उन पर हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण मामले में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर वाद में सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रभावी पैरवी न करने का आरोप है।
नैनीताल हाईकोर्ट ने रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे। कोर्ट के फैसले के खिलाफ बनभूलपुरा क्षेत्र के निवासी अब्दुल मतीन सिद्दीकी सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। उन्होंने उत्तराखंड राज्य को भी पार्टी बनाया था। रेलवे मंत्रालय का मामला होने पर सरकार इस मसले में तटस्थ रहने का प्रयास करती रही। लेकिन मामला न्यायालय में जाने के बाद उसे अपना पक्ष रखना पड़ा।
इस मामले में न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी। न्यायालय में राज्य की ओर से जो पक्ष रखा गया, उससे राज्य असहज है। अपर सचिव न्याय सुधीर कुमार सिंह ने अधिवक्ता अत्रैय को पत्र जारी कर शासन की कार्रवाई से अवगत करा दिया है।
पत्र में कहा गया है कि उन्होंने उच्च न्यायालय में स्वयं प्रभावी पैरवी व बहस नहीं की। दायर वाद की सही जानकारी न दिए जाने और राज्य सरकार के निर्देश के बिना वहां पक्ष रख दिया गया। कोर्ट में रखे गए पक्ष का पत्र में उल्लेख किया गया है। कहा गया है कि न्यायालय में कहा गया कि मामले में उचित समाधान के लिए प्रयास जारी है। इस तरह के कथन से राज्य सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई। सह स्थायी अधिवक्ता अत्रैय से सभी वादों की सूची भी मांग ली गई है।
ये है मामला
हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे। 28 दिसंबर को रेलवे-प्रशासन की टीम पिलरबंदी करने पहुंची तो बनभूलपुरा के हजारों लोगों ने 10 घंटे धरना दिया। 29 दिसंबर को बनभूलपुरा क्षेत्र की हजारों महिलाओं ने कैंडल मार्च निकाला। 30 दिसंबर को बनभूलपुरा क्षेत्र में आमसभा हुई।
31 दिसंबर को रेलवे ने अखबारों में अतिक्रमण हटाने का सार्वजनिक नोटिस जारी किया। दो जनवरी को रेलवे ने मुनादी शुरू की। दो जनवरी को बनभूलपुरा मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई। पांच जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दे दिया और अगली तिथि सात फरवरी लगा दी।